पांच साल सजा, आर्थिक जुर्माना धारा 13-1 अर्थात यदि लोकसेवक अपने लिए या किसी अन्य व्यक्ति के लिए वैध पारिश्रमिक से भिन्न कोई पारितोषण हेतु या ईनाम के रूप में किसी व्यक्ति से प्रतिग्रहण या अभिप्राप्त करता है या प्राप्त करने के लिए सहमत या प्रयत्न करता है।
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वास्तव में, इस अपराध को साबित करनेके लिये सिर्फ यह साबित करना आवश्यक होता हैं कि यदि कोई लोक सेवक भ्रष्ट या अवैध साधनों से अपना पदीय स्थिति का दुरूपयोग कर स्वंय के लिये या किसी अन्य के लिये कोई मूल्यवान चीज या धन सम्बन्धी फायदा अभिप्राप्त करता हैं तो यह अपराध हो जाता है।
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धारा 13 (1) (डी) सपठित धारा 13 (2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अपराध को साबित करने के लिये सिर्फ यह साबित करना आवश्यक होता हैं कि कोई लोक सेवक यदि भ्रष्ट या अवैध साधनों से अपनी स्थिति का दुरूपयोग करके अपने लिये अथवा किसी अन्य के लिये कोई मूल्यवान चीज या धन सम्बन्धी फायदा अभिप्राप्त करताहैं, तो यह अपराध होता है।
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विद्धान अधिवक्ता अभियुक्त द्वारा प्रस्तुत 2002 क्रिमिनल लॉ जनरल पेज 2787 में माननीय उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया हैं किजब तक अभियोजन की साक्ष्य से यह साबित नही हो जावे कि अभियुक्त ने परिवादी से रिश्वत कीराशि प्रतिगृहित कर अभिप्राप्त की हैं तब तक उसे धारा 13 (1) (डी) सपठित धारा 13 (2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अपराध के लिये दोषी करार नहीं दिया जा सकता।
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परंतु प्रशासक, कोई ऐसा अध्यादेश राष्ट्रपति से इस निमित्त अनुदेश अभिप्राप्त करने के पश्चात् ही प्रख्यापित करेगा, अन्यथा नहीं: परंतु यह और कि जब कभी उक्त विधान-मंडल का विघटन कर दिया जाता है या अनुच्छेद 239क के खंड (1) में निर्दिष्ट विधि के अधीन की गई किसी कार्रवाई के कारण उसका कार्यकरण निलंबित रहता है तब प्रशासक ऐसे विघटन या निलंबन की अवधि के दौरान कोई अध्यादेश प्रख्यापित नहीं करेगा।
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उक्त धाराओं का मतलब है डकैती डालते हुए हत्या कर देना, हत्या, हत्या का प्रयास, लोक सेवक का चोट पहुँचाना तथा काम करने से रोकना, खतरनाक आयुध लेकर क्षति पहुँचाना, चुराई हुई सम्पŸिा को यह जानते हुए कि वह डकैती से प्राप्त की गई है, अभिप्राप्त करना, षडयंत्र करना, उपद्रव करना, सरकारी काम में बाधा पहुँचाना, जन सम्पत्ति को क्षतिग्रस्त होने से बचाने का कानून इत्यादि।
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मौजूदा प्रकरण में जो साक्ष्य पत्रावली पर आई हैं उससे यह साबित हुआ हैं कि अभियुक्त ने परिवादी से रिश्वत की मांग की थी और उस मांग के तहत ही परिवादी ने अभियुक्त को रिश्वत की राशि दी थी इस प्रकार यह नहीं कहा जा सकता कि मौजूदा प्रकरण में जो साक्ष्य पत्रावली पर आई हैं उससे यह साबित नही हुआ हैं कि अभियुक्त ने जो राशि प्राप्त की हैं वह प्रतिगृहित कर अभिप्राप्त की हैं।