बिखरे मोती काव्य संग्रह को समीर जी ने अपनी माँ की पुण्य स्मृति को समर्पित किया है-और इस समर्पण में भी एक वेदना ही छुपी है-बिन माँ के उस घर में कैसे रह पाउँगा? काव्य संग्रह को कई नामचीन साहित्य कारों ने अनुशंसित / अभिस्वीकृत भी किया है जिसमें मेरे प्रिय कवि कुंवर बेचैन भी हैं जिनकी कुछ पंक्तियाँ (दिल पे मुश्किल है बहुत दिल की कहानी लिखना....) मैं अक्सर गुनगुनाता रहता हूँ! उन्होंने समीर जी को मूलतः प्रेम का कवि माना है!
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और शायद यह आपराधिक दंड के प्रावधानों के अधीन भी आ सकता है-महानगरो के कलाकार कई बार खुद के अच्छे कार्यों के लम्बे समय तक अभिस्वीकृत (रिकगनायिज) न होते देख भी निराशा में भरकर ऐसे हथकंडो को तात्कालिक नेम और फेम पाने के लिए उठाते हैं जो दरसअल लांग रन में उनके लिए ही प्रतिगामी (काउंटर प्रोडक्टिव) हो उठते हैं...ऐसी तात्कालिक शोहरत पाने की प्रवृत्ति से नए कलाकारों को बचना चाहिए-हुसैन की नक़ल एक नए कलाकार के लिए आत्मघाती हो सकती है अगर उसका काम एक विकृत मानसिकता लिए हुए है......”