अनिष्ट स्थान बाघ इत्यादि से सुवर्ण, कड्क सदृश अभीष्ट वस्तु के लाभ की संभावना होते हुए भी कल्याण होना न नहीं आता, क्योंकि जिस अमृत में जहर का संपर्क है, वह अमृत भी मौत का कारण है, न कि अमरता का।
22.
मन को उसके मध्य से ज्योतिर्लिंग के मध्य में इस प्रकार अवस्थित करना चाहिए जैसे लुहार अपने लोहे को गरम करने के लिए भठी में डाल देता है और जब वह लाल हो जाता है, तो उसे बाहर निकालकर ठोकता-पीटता और अभीष्ट वस्तु बनाता है।
23.
हैं, जो भयावह भवसागर पार कराने वाले परम समर्थ प्रभु हैं, जो नीले कण्ठ वाले, अभीष्ट वस्तु को देने वाले और तीन नेत्रों वाले हैं, जो काल के भी काल, कमल के समान सुन्दर नयनों वाले, अक्षमाला और त्रिशूल धारण करने वाले अक्षर-पुरुष हैं, उन काशी-पुरी के अभिरक्षक स्वामी कालभैरव की मैं चरण-वन्दना करता हूँ ।
24.
अत्यन्त व्याकुल चित्त युक्त और अयुक्त विचार के बिना इधर-उधर दूर से भी दूर प्रदेश तक, ग्राम में कुत्ते की नाईं, घूमता है कहीं पर भी अपनी पूर्ति के उपाय को न पाकर दीन-हीन बना रहता है अर्थात् जैसे कुत्ते अपने उदर की पूर्ति के लिए व्यग्रचित्त होकर ग्राम में घूमते हैं, अभीष्ट वस्तु न पाकर दीन-हीन बने रहते हैं।।