मतप्रदान (वोटिंग), स्वतंत्रता सुधार, लार्ड सभा की सत्ता के हनन सम्बन्धी नियम, तथा युद्धोपरांत अधिराज्य स्वशासन अधिकार (डोमिनियन अधिकार) इन सबके होते हुए भी एक शताब्दी के अभ्यंतर में इंग्लैंड का संविधान अलिखित होकर भी कम परिवर्तन हुए हैं।
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मतप्रदान (वोटिंग), स्वतंत्रता सुधार, लार्ड सभा की सत्ता के हनन सम्बन्धी नियम, तथा युद्धोपरांत अधिराज्य स्वशासन अधिकार (डोमिनियन अधिकार) इन सबके होते हुए भी एक शताब्दी के अभ्यंतर में इंग्लैंड का संविधान अलिखित होकर भी कम परिवर्तन हुए हैं।
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जटिल से जटिल अनुभूतियों को नवगीत ने अपने अभ्यंतर में समेट अत्यंत सहज रूप से व्यक्त किया है श्याम सुन्दर श्रीवास्तव जी के इस गीत में समूची सृष्टि से जुड़ने का जो सगा भाव दिखता है वो समाज में अलख जगाने का भी काम करते हैं
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मैं कल्पना कर सकता हूं कि एक युवा रचनाकार ने, जिसने सृजन की दुनिया में अभी-अभी पांव रखा था, तुर्गनेव के प्रति अपने अभ्यंतर में कितनी श्रद्धा छुपाए रखी होगी, और विशेषकर तब, जबकि तुर्गनेव मेरे पिता के अग्रज, निकोलाई, के बहुत आत्मीय थे.
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इस कला में शमशेर पश्चिम के बिंबवादी कवियों से भी आगे निकल जाते हैं, क्योंकि पशिचम के इमेजिस्ट अपने बिंबों को प्रतीकों की भाषा देते दिखायी देते हैं, शमशेर ऐसा कोर्इ सायास प्रयास करते नज़र नहीं आते, वे बस एक से एक बेहतरीन 'वर्बल आइकन' बिना छेनी हथौड़ी हाथ में लिये गढ़ते हैं, छीलछाल उनके अभ्यंतर में चलती है।
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इसीलिए किसी कार्य को सही ढंग से करना एक निश्चित समय में, निश्चित मुद्रा में और निश्चित विचारों का चिंतन मनन करके किया जाय, तो निश्चित ही हमारे अभ्यंतर में उस परा प्रकृति की प्रकृति को अपनी प्रकृति में उतार सकते हैं, यह समझने एवं अभ्यास की चीज़ है, ध्यान देने की चीज़ है, हम ध्यान दें.
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इस कला में शमशेर पश्चिम के बिंबवादी कवियों से भी आगे निकल जाते हैं, क्योंकि पशिचम के इमेजिस्ट अपने बिंबों को प्रतीकों की भाषा देते दिखायी देते हैं, शमशेर ऐसा कोर्इ सायास प्रयास करते नज़र नहीं आते, वे बस एक से एक बेहतरीन ' वर्बल आइकन ' बिना छेनी हथौड़ी हाथ में लिये गढ़ते हैं, छीलछाल उनके अभ्यंतर में चलती है।
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इस त्रिकोण का मध्य कोण ” शिवपुत्र ” सीधे उर्जा शक्ति के माध्यम से एक ओर केदार नाथ ओर विपरीत दिशा में, कामख्या के संग युक्त रहने के कारण इस ब्रह्माण्ड में उपस्थित किसी भी प्राणी के संग योग शुत्र की रचना कर सकते है एवं उससे वार्ता भी कर सकते है क्योकि ” शिवपुत्र ” वास्तव में अपने अभ्यंतर में पूर्ण जाग्रत ” अर्धनारीश्वर ” शरीर के रूप में {जिसके मध्य पिता केदार नाथ और माता कामख्या एकाकार होकर रहते है.