जब व्यक्ति अमूर्त विचारों को लेकर सर्जन करता है, कोई वस्तु निर्मितकरने के लिए नहीं बल्कि अमूर्त चिंतन के क्षेत्र में सर्जन करने के लिए, तब वह चौथे स्तर पर पहुंचता है.
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अमूर्त चिंतन, यानि अमूर्त अवधारणाओं के ज़रिए चिंतन व्यावहारिक और ऐंद्रीय अनुभव के आधार पर स्कूली आयु के बच्चों में विकसित होता है और आरंभ में इसके रूप सरल होते हैं।
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किंतु यह सोचना ग़लत होगा कि संकल्पनाओं के आत्मसात्करण के दौरान अमूर्त चिंतन का विकास स्कूली बच्चों के संवेदी-क्रियात्मक और बिंबात्मक चिंतन के विकास को खत्म कर देता या रोक देता है।
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लू और धुल भरी आँधियों के साथ गर्मियों के तप्त धूसर दिनों में ये अमूर्त चिंतन उस ईश्वर के दो हाथ और नज़दीक ले जाता है जिसकी कोई रिश्तेदारी इस दुनिया में नहीं है.
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पर सोचने-समझने की दुनिया पाठक से भी कुछ मांग करती है. लेवी-स्त्रोस तथाकथितआदिम समाजों के अध्ययन से इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सबसे आदिम मानसिकता कीज्ञानात्मक व्यवस्था की बुनियाद में भी अमूर्त चिंतन का श्रेष्ठ स्तर मिलता है.
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अमूर्त चिंतन से असंतुष्ट फायरबाख इंद्रिय अनुध्यान (प्रत्ययवादी धारणा की मदद से कल्पित विचारों के समक्ष चिंतन को पुनः पुनः परिभाषित करना) की शरण लेते हैं, पर वह एन्द्रियता को व्यवहारिक मानव-इंद्रिय क्रिया के रूप में नहीं विचारते।
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अतः वह अमूर्त चिंतन नहीं, बल्कि स्वयं आख्यान ही है, जो समस्त ‘ यूटोपियाई ' गतिविधि को प्रमाणित करने का आधार है, और महान उपन्यासकार ‘ यूटोपिया ' की समस्याओं का ठोस निरूपण प्रस्तुत करते हैं।
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इस प्रकार अगर पशुओं का ठोस, व्यवहारिक चिंतन उन्हें अपने सामने मौजूद स्थिति के प्रत्यक्ष प्रभाव की दया पर छोड़ता है, तो मनुष्य की अमूर्त चिंतन की क्षमता उसे अपने सामने मौजूद स्थिति से अपेक्षाकृत स्वतंत्र बनाती है।
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अमूर्त चिंतन से असंतुष्ट फायरबाख इंद्रिय अनुध्यान (प्रत्ययवादी धारणा की मदद से कल्पित विचारों के समक्ष चिंतन को पुनः पुनः परिभाषित करना) की शरण लेते हैं, पर वह एन्द्रियता को व्यवहारिक मानव-इंद्रिय क्रिया के रूप में नहीं विचारते।
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अगर ये बाभन इतने ही अमूर्त चिंतन की खान हैं तो मुझे बताएं कि पिछले सौ साल में उत्तर भारत में कौन सा ब्राह्मण दार्शनिक भारत में पैदा हुआ है जो रसेल, विटगेंस्टाइन, सात्र, माक्र्स का सामने टिक सकेगा।