परंपरागत ‘ अर्धस्वर ' के अधीन परिगणित चारों व्यंजन य, र, ल, व में से पहला व्यंजन ‘ य ' ‘ अर्धस्वर ' है, जबकि ‘ व ' (जैसे: ‘ वन ' शब्दों में) वस्तुत: ‘ घोष संघर्षी ' है ।
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न्. ब् एवंझ्न् इन चारों स्वनों के रूप में द्वयोष्ठ्य एवं नासिक्य व्यंजन स्वतन्त्र स्वनिमोके रूप में प्रयोग किए जाते जबकि वर्त्स्य एवं तालव्य स्वन एक ही स्वनिम के दोसहस्वनों के रूप में प्रयुक्त होता है, अन्यत्र केवल वर्त्स्य नासिक्य उपस्वनकेवल तालव्य अर्धस्वर "य" से पहले प्रयुक्त होता है, अन्यत्र केवल वर्त्स्यनासिक्य का ही उच्चारण होता है.
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न्. ब् एवंझ्न् इन चारों स्वनों के रूप में द्वयोष्ठ्य एवं नासिक्य व्यंजन स्वतन्त्र स्वनिमोके रूप में प्रयोग किए जाते जबकि वर्त्स्य एवं तालव्य स्वन एक ही स्वनिम के दोसहस्वनों के रूप में प्रयुक्त होता है, अन्यत्र केवल वर्त्स्य नासिक्य उपस्वनकेवल तालव्य अर्धस्वर "य" से पहले प्रयुक्त होता है, अन्यत्र केवल वर्त्स्यनासिक्य का ही उच्चारण होता है.