यह मूल शब्द १९०७ में अर्धायु काल के नाम से प्रयुक्त हुआ था, जिसे बाद में १९५० में घटा कर अर्धायु कर दिया गया।
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संवृत चक्र का संदर्भ U-238 एवं Pu-239 के रासायनिक पृथक्करण और आगे पुनश्चक्रण से जबकि अन्य रेडियो सक्रिय विखण्डन पदार्थों का उनकी अर्धायु एवं सक्रियता के अनुसार पृथक्करण किया गया तथा छंटाई की गई तथा उनकी न्यूनतम पर्यावरणीय असामान्यताओं का समुचित प्रकार से निपटान किया गया ।
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संवृत चक्र का संदर्भ U-238 एवं Pu-239 के रासायनिक पृथक्करण और आगे पुनश्चक्रण से जबकि अन्य रेडियो सक्रिय विखण्डन पदार्थों का उनकी अर्धायु एवं सक्रियता के अनुसार पृथक्करण किया गया तथा छंटाई की गई तथा उनकी न्यूनतम पर्यावरणीय असामान्यताओं का समुचित प्रकार से निपटान किया गया ।
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शरीर पर तिल [naevi] बीमारी का सम्बन्ध उपदश और पारद विष से जुडा रहता हैं, इस कि निचली श्रेणी के उत्तको में पर विशेष क्रिया होती हैं, ये बीमारी ज्यादातर अधिक आयु [अर्धायु] में रोगी को विवश होकर स्फूर्ति के कारण स्फूर्ति से घुमना पड़ता हैं.