जहाँ अलिखित संविधान होता है वहाँ शासनप्रबन्ध पर संवैधानिक नियम की आबद्धता अवश्य नहीं होती किंतु जनमत के भय से तथा निर्वाचन-क्रिया, परम्पराओं एवं रूढ़ियों द्वारा इस प्रकार का नियंत्रण एवं अनुशासन सहज रूप से होता रहता है।
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जहाँ अलिखित संविधान होता है वहाँ शासनप्रबन्ध पर संवैधानिक नियम की आबद्धता अवश्य नहीं होती किंतु जनमत के भय से तथा निर्वाचन-क्रिया, परम्पराओं एवं रूढ़ियों द्वारा इस प्रकार का नियंत्रण एवं अनुशासन सहज रूप से होता रहता है।
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पिछले कुछ महीनों से लगने लगा है कि देश में ‘सरका र ' जैसे है ही नहीं! थोड़ी देर के लिए यह मान भी लें तो उसे प्रधानमंत्री तो अवश्य नहीं चला रहे हैं, वे मात्र किसी और का मुखौटा हैं।
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टामसन लिखते हैं “ऐसा अवश्य नहीं सोचना कि केवल आगंतुक जानवरों के ही कारण ऐसा प्रभाव पड़ा है, यद्यपि चूहे, बिल्लियाँ, खरगोश, सूअर, मवेशी, तथा चिड़ियाँ अपने निवासक्षेत्र की सीमाओं को पारकर दूसरे क्षेत्र में बहुत दूर तक घुस गए हैं।
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इसी तरह, जब गौना लेने गये, श्रीमतीजी तेरहवाँ पार कर चुकी थीं-कुछ दिन हुए थे, उनकी किसी नानी ने कहा था उनकी अम्मा से-मैं वही था-हम दोनों की गाँठ जोड़कर कौन एक पूजा की जा रही थी-मदनदेव की अवश्य नहीं थी।
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आदरणीय शाही जी, जहां तक चीन का कूटनीतिक इतिहास उसकी सक्रिय भागीदारी की पुष्टि अवश्य नहीं करता किन्तु चीन का गुपचुप तरीके से हर बड़ी हलचल में हस्तक्षेप करना उसकी फितरत रही है और शायद इसी कारण वो आज इतनी शक्तिशाली स्थिति तक पहुँच सका है।
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अवश्य नहीं. लेकिन क्या अगर एक ठोस दीवार में एक दिन तुम फिसल गया और वह ठीक से, अहानिकर गए थे? फिर से कोशिश नहीं क्या आप ललचना? यह parenting के साथ एक ही है, जब बच्चों को लेकर है कि माँ और पिताजी हैं ”
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मैं क्यों आदमी अपने ही संयम प्रश्न में फोन नहीं करता है आश्चर्य है, के रूप में हम इतिहास आदमी भर पता है कि सबसे बुरा अत्याचार, जो इंद्रियों की चतुराई और पूरा उपयोग किया गया है प्रतिबद्ध है और एक में जहां संयम इन फैसलों में प्रबल है (नोट: अवश्य नहीं विवेक).
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श्रीमान मदन मोहन जी मुझे ग़ज़ल के व्याकरण का ज्ञान तो नहीं है परन्तु आपकी कही बात (कविता में बात शब्दों के माध्यम से होनी चाहिए, कोई चिन्ह लगाकर नहीं.इमारतों में बसने वाले बस गए...सुनने वाला इस निशान को किस तरह दिखायेगा?)के बारे में अवश्य कुछ कहने की हिम्मत कर रही हूँ| मदन मोहन जी बात चीत के दौरान हम किसी चिन्ह का प्रयोग अवश्य नहीं करते परन्तु स्वर के माध्यम से हम अपने विचारों को व्यंग, क्रोध,स्नेह,आदर के भाव से प्रदर्शित करते हैं