शरीर अपवित्र होने और मंत्र का अशुद्ध उच्चारण करने पर भी भावपूर्ण उपासना शीघ्र फलवती होती है क्योंकि यह केवल मन का साधन है।
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हिन्दी बोलने एवं पढ़ने में अशुद्ध उच्चारण के चलते आमतौर से होने वाली त्रुटियों से बचने में सहायता देना ही इस व्याख्यान का उद्देश्य है.
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मैं अपने अशुद्ध उच्चारण के लिए अपने पहले अध्यापक स्वर्गीय कल्लर पाठक को दोष दूँ या बाबा तुलसी दास को समझ नहीं पा रहा हूँ ।
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साथ ही ज्ञान के संक्रमण के प्रति इतनी सजगता थी कि एक अक्षर के भी अशुद्ध उच्चारण या मि प्रयोग को सहन नहीं किया जाता था ।
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@ संजीव जी धन्यवाद, @ रोमेंद्र जी, आपने ध्यान से सुना आभार! अशुद्ध उच्चारण वाले शब्द विशेष का उल्लेख कर दें तो सुधार करने में आसानी होगी.....
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अर्थात व्यंजन वर्ण के अशुद्ध उच्चारण से आयुका नाश होता है और स्वर वर्ण के अशुद्ध उच्चारण से रोग होते हैं, अशुद्ध उच्चारणसे युक्त मंत्रद्वारा अभिमंत्रित अक्षत सिरपर वज्रपात सामान गिरता है।
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अर्थात व्यंजन वर्ण के अशुद्ध उच्चारण से आयुका नाश होता है और स्वर वर्ण के अशुद्ध उच्चारण से रोग होते हैं, अशुद्ध उच्चारणसे युक्त मंत्रद्वारा अभिमंत्रित अक्षत सिरपर वज्रपात सामान गिरता है।
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ग्लेंडर ने भी मृध्रवाच को अशुद्ध उच्चारण ही माना है. जहाँतक प्रजातीय सत्रुता का प्रश्न है स्वयं वैदिकों में भी उसी प्रकार परस्परयुद्ध हुए हैं जैसे उनका दासों, दस्युओं आदि के साथ हुआ है.
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भाषाओं के संदर्भ में वर्तनी की गलती या अशुद्ध उच्चारण आमतौर पर किसी से भी हो सकता है मगर आसान भाषा की आड़ में बोलचाल के शब्दों से लगातार किनारा करते जाना भयावह है।
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तो यहाँ बहुत सुन्दर बात बतायी गयी है कि आप अगर यदी अशुद्ध उच्चारण द्वारा भी भगवान् का नाम लेते हैं वो भी अपराधरहित हो करके तो आपको भवबंधन से छुटकारा मिल जाएगा.