मगर अनवर भाई! मुझे यह अच्छा नहीं लगता कि कोई भी, किसी भी वर्ग का अश्रद्धालु, शरीयत, कुअरान शरीफ या हिन्दू धर्म ग्रंथों की विवेचना करने का प्रयत्न करे जबकि यह एक महान श्रद्धा का प्रतीक हैं, मगर परस्पर जाने अनजाने में रखी गुस्सा के कारण अधिकतर लोग ऐसा कर रहे हैं!
22.
अश्रद्धालु इसमें सन्देह कर सकते हैं ; किन्तु महाकाल की क्षमता पर जिन्हें विश्वास है, वे अनुभव करते रह सकते हैं कि जो प्रक्रिया ८ ० वर्ष से हर कदम को सफलता प्रदान करती रही है, वह अपने समर्पित अकिंचन को सौंपी हुई जिम्मेदारियों को भी स्वयं सँभाल लेगी और जो अभीष्ट हैं, उसे सम्पन्न करके रहेगी।
23.
परन्तु यदि निर्बल मनोभूमि के-डरपोक, संदेही स्वभाव वाले, अश्रद्धालु, अस्थिर मति किसी साधन को करें और थोड़ा-सा संकट उपस्थित होते ही उसे छोड़ भागें, तो वैसा ही परिणाम होता है जैसा कि किसी सिंह या सर्प को पहले तो छेड़ा जाय पर जब वह कुद्ध होकर अपनी ओर लपके तो लाठी-डण्डा फेंककर बेतहाशा भागा जाय ।
24.
लेकिन ये हरिओम पुकारने वाले उसे ऐसी आवाज़ में कहते हैं जैसे कहीं कोई हादसा वारदात या हमला हो गया हो उसमें एक भय एक हौल पैदा करने वाली चुनौती रहती है दूसरों को देख वे उसे अतिरिक्त ज़ोर से उच्चारते हैं उन्हें इस तरह जांचते हैं कि उसका उसी तरह उत्तर नहीं दोगे तो विरोधी अश्रद्धालु नास्तिक और राष्ट्रद्रोही तक समझे जाओगे इस तरह बाध्य किये जाने पर अक्सर लोग अस्फुट स्वर में या उन्हीं की तरह ज़ोर से हरिओम कह देते हैं शायद मज़ाक़ में भी ऐसा कह देते हों