अस्सी के दशक के अंत में श्रीमान विश्वनाथ प्रताप सिंह, भगवान् शंकर के नाम को कलुषित करते हुए जो ज़हर का बीज बो गए हैं, उस से उबरने में इस राष्ट्र को शायद सदियाँ लग जाएँ, यदि आप उस दौर की जवान होती पीढी पर गौर करें तो जवाब मिल जायेगा, जातिगत वोट बैंक के नाम पर जहर पिलाकर, उस दौर की पीढी को परिपक्व किया गया.