आंखों से सम्बंधित लक्षणं-रोगी के रोशनी में आते ही आंखों का बंद हो जाना, आंखों के अन्दर के कोणों में चीस सी मारती हुई महसूस होना, आंखों से हर समय पानी सा निकलते रहना, निम्न अक्षिगहर का स्नायुशूल, नशीले पदार्थो का सेवन करने से अक्षिस्नायु का शोष, आंखों की पेशियों का आंशिक पक्षाघात, नेत्रकोटकों में फड़कन जो सिर के पीछे के हिस्से में फैल जाता है, अक्षितन्त्रिकाशोथ आदि आंखों के रोगों के लक्षणों में रोगी को नक्सवोमिका औषधि का सेवन कराना लाभदायक रहता है।
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इन मनोरोगविज्ञान संबंधी नवाचारों ने मनोरोगियों को शरण-स्थानों में भेजने की संस्कृति पर रोक का संकेत दिया, जो उस समय प्रभावी थी क्योंकि मानसिक रोगों का उपचार सिर्फ असंतोषजनक ढंग से अतिवादी उपायों से किया जाता था या उन्हें उपचार योग्य नहीं माना जाता था.[5][6][7] बीसवीं शताब्दी के आरंभ की इन दैहिक चिकित्सा पद्धतियों, जिन्हें एक जीवन बचाने के हताश अंतिम उपाय के अर्थ में वीरतापूर्ण वर्णित किया गया था, में पागल के सामान्य आंशिक पक्षाघात के लिेए विषमज्वरीय चिकित्सा (1917),[8] बार्बिटुरेट प्रेरित गहरी नींद चिकित्सा (1920), इन्सुलिन आघात चिकित्सा (1933), कार्डियाजोल आघात चिकित्सा और विद्युत-आक्षेपी चिकित्सा शामिल थी.[9][10]