देशकाल और परंपरा की अचूक और विलक्षण पहचान के साथ वे महाभारत का पूरा महाकाव्य फलांग कर उसके बिल्कुल आखिरी सिरे तक पहुंचते हैं जहां युद्ध खत्म हो चुका है, थकी-हारी, घायल और आर्तनाद करती लुंज-पुंज, बची-खुची सेनाएं नगर लौट रही हैं, दुर्योधन एक सरोवर के तल में दम साधे बैठा है, धृतराष्ट्र को पहली बार आशंका व्याप रही है और गांधारी पहली बार क्रोध और अनास्था की विह्वलता में जल रही है.