यह अलग अलग रूपों में प्रकट कर सकते हैं-झूठ बोल रही है, धोखा दे, चोरी, चोट पहुँचाने, आदि पाप धार्मिक मूल से वापस कदम है, यह वास्तव में क्या है, और इसके कारण क्या हैं? [...]
22.
सप्तम या अष्टम में मंगल आदि पाप ग्रह स्वराशि, मूल त्रिकोण राशि में हों, तब भी क्या अशुभ फलकारक होंगेक् सप्तम स्थान में मंगल रूचक योग क्या ऎसे में निष्फल हो जाएगाक् अष्टम भाव में शनि आयुकारक होते हैं।
23.
जो गंगा तट पर निवास करते हुए मद्य, मांस सेवन व व्याभिचार आदि पाप कर्म करते हैं, वे उसके न केवल तमाम संचित पुण्य नष्ट कर डालते हैं, अपितु असंख्य गुना पापों की प्राप्ति के कारण भी बनते हैं।
24.
” ८ ॰ जन्म कुण्डली में सूर्य, शनि, मंगल, राहु एवं केतु आदि पाप ग्रहों के कारण विवाह में विलम्ब हो रहा हो, तो गौरी-शंकर रुद्राक्ष शुद्ध एवं प्राण-प्रतिष्ठित करवा कर निम्न मन्त्र का १ ०० ८ बार जप करके पीले धागे के साथ धारण करना चाहिए।
25.
प्रायश्चित में एक बात विशेष रूप से ध्यान रखा जाये कि प्रायश्चित उस अंगइन्द्रिय के द्वारा किया जाये, जिस अंग इन्द्रिय द्वारा पाप कर्म किया गया हो, जैसे वाणी द्वारा कटु निंदा कारक अथवा मिथ्या भाषण आदि पाप कार्य निश्चयपूर्वक अथवा भूल से हो गया हो तो यथा योग्य मौन व्रत लेकर मन से गायत्री का जाप किया जाये तथा ईश्वर से प्रार्थनापूर्वक क्षमा याचना की जाये, साथ ही दृढ संकल्प किया जाये कि आगे ऐसा वचन मेरे द्वारा उच्चारित नहीं होगा।
26.
और सुनो, संसार के अंत तक मैं सब दिन तुम्हारे साथ हूँ।' (मत्ती 28:19-20) प्रेरितों के बपतिस्मा देने के दिन से ही पवित्रात्मा उन पर उतर आया, निकोदेमुस को कहे गए ख्रीस्त के शब्द उन्हें याद आए, 'यदि कोई जल और आत्मा से जन्म नहीं लेता, तो वह ईश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता।' (योहन 3:5) शिशु बपतिस्मा सामान्य बात थी, क्योंकि उनका यह तर्क था कि प्रत्येक जो इस संसार में आता है, अपनी आत्मा में आदि पाप का दाग लेकर जन्मता और हर एक को उससे छुटकारे का अधिकार है।