योगी / रिशि मुनि उस अलौकिक आनन्द की खोज में रहते हैं-जो संसार सुख के बाद भी प्राप्त हो सकती है, बिना उसके भी।-सभी रिशि, मुनि, साधू, सन्त-अविवाहित नहीं होते थे, न सन्तान रहित, वे अलौकिक सुख प्राप्ति के बाद मोक्ष का अलौकिक आनन्द्प्राप्ति के लिये प्रयत्न करते थे.
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कोई भी व्यक्ति आनन्द की खोज में हैं, पर वो आनन्द उसे कहां मिल रहा हैं, किस रुप में मिल रहा हैं, जिसे वो प्राप्त करने की कोशिश कर रहा है, उसे वो लेकर रहेगा, चाहे आप झूठी व्याख्यान देकर स्वयं को स्वामी इलेक्ट्रानिकानंद अथवा प्रिंटानंद की उपाधि से विभूषित होने का मन में ख्याल ही क्यूं न रखे.
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दूसरी ओर तुलसी राम की बाल छवि को ह्रदय में आकार देते हुए आनन्द से निहारते हुए कहतें हैं “ वर दन्त की पंगति कुंद कली, अधराधर पल्लव खोलन की चपला चमके घन बीच जगे, ज्यूँ मोतिन माल अमोलन की घुन्घरारी लटें लटकें मुख ऊपर,कुंडल लोल कपोलन की न्योछावरी प्राण करें तुलसी, बलि जाऊं लला इन बोलन की ” तथ्य यह है कि हम सब आनन्द चाहते हैं और आनन्द की खोज में ही जीवन में भटक रहे हैं.