इस मैदानी हिस्से की जलराशि में सामुदायिक समन्वित संस्कृति के दर्शन होते हैं, जहां जल-संसाधन और प्रबंधन की समृद्ध परम्परा के प्रमाण, तालाबों के साथ विद्यमान है और इसलिए तालाब स्नान, पेयजल और अपासी (आबपाशी या सिंचाई) आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष पूर्ति के साथ जन-जीवन और समुदाय के वृहत्तर सांस्कृतिक संदर्भयुक्त बिन्दु हैं।
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एक पहरेदार होता है जो पड़ोस के समुदायों से सरहद की रक्षा करता है, आबपाशी का हकीम होता है जो सिंचाई के लिए पंचायती तालाबों से पानी बांटता है, ब्राह्मण होता है जो बच्चों को बालू पर लिखना-पढ़ना सिखाता है, पंचाग वाला ब्राह्मण या ज्योतिषी होता है जो बुआई, कटाई और खेत के अन्य काम के लिए मुहूर्त विचारता है।
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अपने किसी भी हाशियानशीन और क़राबतदार को कोई जागीर मत बख़्श देना और उसे तुमसे कोई ऐसी तवक़्क़ो न होनी चाहिये के तुम किसी ऐसी ज़मीन पर क़ब्ज़ा दे दोगे, जिसके सबब आबपाशी या किसी मुशतर्क मामले में शिरकत रखने वाले अफ़राद को नुक़सान पहुंच जाए के अपनेे मसारिफ़ भी दूसरे के सर डाल दे और इस तरह इस मामले का मज़ा इसके हिस्से में आए और उसकी ज़िम्मेदारी दुनिया और आखि़रत में तुम्हारे ज़िम्मे रहे।
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भूमि को उपजाऊ बनाने की यह कृत्रिम व्यवस्था, जो एक केंद्रीय सरकार पर निर्भर करती थी, और सिंचाई और आबपाशी के काम की उपेक्षा होते ही तुरंत चौपट हो जाती थी, इस विचित्र लगने वाले तथ्य का भी स्पष्टीकरण कर देती है कि पाल्मीरा, पेत्रा, यमन के भग्नावशेषों और मिस्र, ईरान और हिंदुस्तान के बड़े-बड़े सूबे जैसे वे विशाल क्षेत्र, जो कभी खेती से गुलजार रहते थे, आज हमें उजाड़ और रेगिस्तान बन गए क्यों दिखाई देते हैं।