अगर यह उपनिवेश वही होता जिससे लड़ने के लिए राष्ट्रवादी क्रांतियाँ की गई थीं और आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था की अवधारणा पेश की गई थी तो शायद हम इसके खिलाफ उपनिवेशवाद के नाम से परिभाषित हो चुकी अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय पूँजी, पितृसत्ता इतरलिंगी यौन चुनाव और पुरुष-वर्चस्व की ज्ञानमीमांस का उपनिवेश है जिसकी सीमाएँ मनोजगत से व्यवहार-जगत तक और राजसत्ता से परिवार तक फैली हुई हैं।
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अगर यह उपनिवेश वही होता जिससे लड़ने के लिए राष्ट्रवादी क्रांतियाँ की गई थीं और आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था की अवधारणा पेश की गई थी तो शायद हम इसके खिलाफ उपनिवेशवाद के नाम से परिभाषित हो चुकी अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय पूँजी, पितृसत्ता इतरलिंगी यौन चुनाव और पुरुष-वर्चस्व की ज्ञानमीमांस का उपनिवेश है जिसकी सीमाएँ मनोजगत से व्यवहार-जगत तक और राजसत्ता से परिवार तक फैली हुई हैं।
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सवाल यह है कि परिवार, विवाह की संस् था, धर्म और परंपरा को कोई क्षति पहुँचाने का कार्यक्रम अपनाए बिना यह चमत् कार कैसे हुआ? स् त्री को प्रजनन करने या न करने का अधिकार नहीं मिला, न ही उसके प्रति लैगिक पूर्वाग्रहों का शमन हुआ, न ही उसे इतरलिंगी सहवास की अनिवार्यताओं से मुक्ति मिली और न ही उसकी देह का शोषण खत् म हुआ-फिर बाजार ने यह सबलीकरण कैसे कर दिखाया?
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गुवाहाटी में एक नवयुवती का चीरहरण करती, उसे नोचटी, सिगरेट से जलाती, उसके शरीर के साथ खिलवाड़ करती वह भीड़ क्या प्राकृतिक इतरलिंगियों की संतानें न थीं? समलैंगिकों की संतानें उनसे बदतर तो क्या होंगी? जो जन्म देने से पहले गुड्डे गुड़ियों का ध्यान रख, उनकी लंगोट बदल, बॉटल से दूध पिला बच्चा पालने का अभ्यास कर रहे हैं क्या वे अपनी संतान इन हिंसक बलात्कारियों के इतरलिंगी माता पिता से किसी तरह से भी बुरी तरह से पालेंगे? मुझे तो नहीं लगता।