हिन्दी और उर्दू लगातार एक दूसरे से मिलाकर बोले जाते रहे हैं और हमारे पुरखे उस आलीशान मिश्रण की गरिमा और शालीनता बनाए रखना जानते थे और जिसे हमारे समकालीन शायर बशीर बद्र ' वो इत्रदान सा लहज़ा मेरे बुज़ुर्गों का ' कह चुके हैं।
22.
थेवा कला से बहुमूल्य आभूषण बॉक्स, प्लेट्स, सिगरेट बॉक्स, इत्रदान, फोटोफ्रेम आदि के अलावा पेंडल, ईयररिंग, हार, पाजेब, बिछूए, कफ के बटन, टाई पिन और साड़ी पिन आदि आभूषण एवं देवी देवताओं की प्रतिमाएँ भी बनाई जाती है।
23.
अब यदि तुम अपने गाँव जाओ तो इत्रदान में बसी सुगन्ध सी यादों में ध्यान लगाना नदी का किनारा, नहान घाट और लोगों की भीड़ तुम इस चित्र को अपने साथ ले जाओ जिस गाँव में ये सब ना हो उस गाँव में इस गाँव की यादें तुम ले जाओ