खुले रंगमंच पर बड़े दर्शक वर्ग के समक्ष दार्शनिक सवालों से जूझते हुए ' ईहामृग ' का मंचन क्लासिकी आयोजन में आज के हिन्दी रंगकर्म की दस्तक का प्रतीक बनकर आया, जिसने प्रेक्षकों के मन को थोड़ा मथने में कामयाबी पाई और क्लासिकी नाटय और समकालीन रंगानुभव के बीच संचरण की पुलक भी प्रेक्षकों को दी।
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अग्निपुराण में दृश्य काव्य या रूपक के २ ७ भेद कहे गए हैं-नाटक, प्रकरण, डिम, ईहामृग, समवकार, प्रहसन, व्यायोग, भाण, वीथी, अंक, त्रोटक, नाटिका, सट्टक, शिल्पक, विलासिका, दुर्मल्लिका, प्रस्थान, भाणिका, भाणी, गोष्ठी, हल्लीशक, काव्य, श्रीनिगदित, नाटयरासक, रासक, उल्लाप्यक और प्रेक्षण ।