अन्यथा, यह भोजनवस्तु को बिना चबाएं निगल लेना और फिर दुबारा बाहर उगल देना जैसा होगा-जिससे कुछ भी पोषण प्राप्त नहीं होता ।
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पर किसी कर्मचारी के भीतर कुछ ऐसा भरा था जिसे वह धुएँ के बहाने उगल देना चाहता था, ” आण्टी जी... आप नहीं जानती...
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बच्चे आत्महत्या कर रहे थे, उनका बस्ता भारी होता जा रहा था, पढ़ाई उनके लिए सूचनाओं का भण्डार हो गयी थी, जिसे उन्हें रटना और उगल देना था।
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बच्चे आत्महत्या कर रहे थे, उनका बस्ता भारी होता जा रहा था, पढ़ाई उनके लिए सूचनाओं का भण्डार हो गयी थी, जिसे उन्हें रटना और उगल देना था।
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बच्चे आत्महत्या कर रहे थे, उनका बस्ता भारी होता जा रहा था, पढ़ाई उनके लिए सूचनाओं का भण्डार हो गयी थी, जिसे उन्हें रटना और उगल देना था।
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हमारे मन में किसी स्थिति या व्यवस्था या विशेष मानसिकता के प्रति आक्रोश होता है और तुरत-फुरत मौका मिलते ही हम उसे उगल देना चाहते हैं इस पूर्वाशा के साथ कि इससे मन हलका हो जाएगा और वापस काम पर चलेंगे तो ताज़ादम हो कर ।
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मन-मस्तिष्क भटके हुए हैं, भटके इन द सेंस अस्थिर हैं, जिसमें आप बैठकर कोई बेहतर लेखन नहीं कर पाते, किंतु विचारों के चक्रवात में भी फंसा है मन, जो उगल देना चाहता है जो कुछ भी हैं, जैसा भी है..
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हमारे मन में किसी स्थिति या व्यवस्था या विशेष मानसिकता के प्रति आक्रोश होता है और तुरत-फुरत मौका मिलते ही हम उसे उगल देना चाहते हैं इस पूर्वाशा के साथ कि इससे मन हलका हो जाएगा और वापस काम पर चलेंगे तो ताज़ादम हो कर ।
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वैसे भी तुलसीदास की चौपाई चरितार्थ होती है कि “ समरथ को नहिं दोष गुंसाई...।” क्या अच्छा सोचूं? मन-मस्तिष्क भटके हुए हैं, भटके इन द सेंस अस्थिर हैं, जिसमें आप बैठकर कोई बेहतर लेखन नहीं कर पाते, किंतु विचारों के चक्रवात में भी फंसा है मन, जो उगल देना चाहता है जो कुछ भी हैं, जैसा भी है..।