पाणिनी जैसे मनीषियों ने ध्वनि एवं लेखन में ऐक्य पर बल देते हुए ध्वनियों का स्वर एवं व्यंजन में वर्गीकरण किया, उच्चारण स्थान और विधि के आधार पर लिपि संरचना सारणी बनायी ।
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पाणिनी जैसे मनीषियों ने ध्वनि एवं लेखन में ऐक्य पर बल देते हुए ध्वनियों का स्वर एवं व्यंजन में वर्गीकरण किया, उच्चारण स्थान और विधि के आधार पर लिपि संरचना सारणी बनायी ।
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-शुद्ध उच्चारण नियमों में स्वरों तथा व्यंजनों के प्रकार, उनके उच्चारण स्थान, उच्चारण के समय जिह्वा तथा अन्य अवयवों की स्थिति, उच्चारण के आधार आदि की जानकारी दी जानी चाहिए ।
24.
अट्ठावनवाँ अध्याय-इस अध्याय में बीज मंत्र उनके प्रसव स्थान अर्थात् उनके उच्चारण स्थान और बिन्दु विसर्ग आदि से उनके संबंध का वर्णन किया गया है और बताया गया है कि अक्षरों की योनियाँ चालीस हेाती हैं।
25.
उदाहरण के लिए अंग्रेज़ी में नासिक व्यंजन (म, न, और इनसे मिलते व्यंजन) मुंह में अपना उच्चारण स्थान बदलकर वहीँ बना लेते हैं जो उनके बाद आने वाले रुकाव-वाले व्यन्जन (जैसे कि क, ग, च, प, इत्यादि) का होता है।
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उदाहरण के लिए अंग्रेज़ी में नासिक व्यंजन (म, न, और इनसे मिलते व्यंजन) मुंह में अपना उच्चारण स्थान बदलकर वहीँ बना लेते हैं जो उनके बाद आने वाले रुकाव-वाले व्यन्जन (जैसे कि क, ग, च, प, इत्यादि) का होता है।