जब मैं उसके शक को परिहास के आवरण से ढकना चाहता तो मुझसे एक साथ कई प्रश्न पूछ बैठती-' ' क्या कभी किसी का लड़का नहीं चुराया गया? क्या काबुल में गुलाम नहीं बिकते? क्या एक लम्बे-तगड़े काबुली के लिए एक छोटे बच्चे का उठा ले जाना असम्भव है? '' इत्यादि।
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राहचलते महिलाओं के गले से चेन खींच लेना, शादी के घर पर धावा बोलकर सब कुछ उठा ले जाना, मामूली पैसों के लिए हत्या कर देना जिस समाज में सामान्य सी बात रह गयी हो, वहां अगर किसी अकेली युवती के पास करोड़ों रुपये हों तो उससे दोस्ती करने वाले सैकड़ों लोग होंगे।
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क्या जिस शहर में वे रहते हैं वहां उपद्रव करना, सरकारी संपत्ति को नुक्सान पहुंचाना, लोगों के घरों के दरवाजों को तोड़ देना, गलियों में लगे बल्ब व टयूबों को अपने गुस्से का निशाना बनाना, बैंक को तोड़ कर कम्प्यूटर उठा ले जाना, पेट्रोल पंप-एटीएम को तोड़ देना भला कहां की धार्मिकता है?