अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा तर्क दिया गया कि भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 की धारा-371 के अन्तर्गत उत्तराधिकार प्रमाणपत्र जारी करने के सम्बन्ध में जिला न्यायालय की क्षेत्रीय अधिकारिता निम्न प्रकार है-1-जिस जनपद में मृतक का साधारणतया निवास हो उस जनपद के न्यायाधीश का न्यायालय।
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विभाग से मृतका के संदर्भ में देय राशियों के बारे में सक्षम न्यायालय से उत्तराधिकार प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने हेतु अपीलार्थी को निर्देशित किया गया था लेकिन अधीनस्थ न्यायालय को वाद सुनने का क्षेत्राधिकार होने के बाबजूद भी याचिका निरस्त कर कानूनी भूल की गयी है।
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प्रार्थिनी श्रीमती पार्वती देवी के नाम, डाकघर शाखा तेजम के उपडाकघर भैसकोट में मृतक स्व0 टीका राम जोशी के नाम जमा धनराशि कुल 1,46,840-50 (एक लाख छियालीस हजार आठ सौ चालीस रूपये पचास पैसे) रूपये के लिए, उचित स्टाम्पशुल्क अदा करने पर, उत्तराधिकार प्रमाणपत्र जारी किया जाए।
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उसे किसी तरह का गारंटर पेश नहीं करना होगा, लेकिन कुछ मामलों में बैंक उत्तराधिकार प्रमाणपत्र की मांग करते हैं जैसे कि (ए) यदि कोई विवाद की स्थिति हो और सभी कानूनी वारिस बैक से मिली रकम बांटने को तैयार न हों (बी) कुछ और असाधारण मामलों में जब बैंक को रकम का दावा करने वाले व्यक्ति के इस दावे पर वाजिब संदेह हो जाए कि वही एकमात्र कानूनी वारिस है।