इस कविता को स्वीकृत, सुपरिचित अर्थों में पूर्णतः ' मौलिक ' नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह गीताप्रेस, गोरखपुर द्वारा अपने सुविख्यात मासिक ' कल्याण ' के अगस्त १ ९ ४ २ के विशेषांक के रूप में प्रकाशित महाभारत-अनुवाद ' संक्षिप्त महाभारतांक ' से प्राप्त, उत्थापित, शोधित, उत्खनित, अन्वेषित तथा आविष्कृत (प्रबुद्ध पाठक जो चाहें सो कह लें) है.