संसदीय लोकतंत्रा में राजसत्ता के संरक्षण में व्यक्तिगतपूँजी के विकास का जो खेल आज चल रहा है, जिसका 'साइड इफेक्ट्स' केवल आम आदमी झेलता है, उसे उसके उद्भव काल में ही प्रेमचंद ने देख लिया था।
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हिंदी पत्रकारिता का उद्भव काल (1826 से 1867) कलकत्ता से 30 मई, 1826 को ‘ उदन्त मार्तण्ड ' के सम्पादन से प्रारंभ हिंदी पत्रकारिता की विकास यात्रा कहीं थमी और कहीं ठहरी नहीं है ।
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साहित्य के ये दोनों ही सिरे उसके उद्भव काल से मौजूद रहे हैं और इसी के आधार पर हमारे देश में यह बहस चली आई है कि लोक और वेद में से किसे श्रेष्ठ माना जाए या इनमें से किसी एक का अस्तित्व क्या दूसरे के बिना संभव है?
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ऐसे द्विवविध् रूप तो रोमन लिपि में लगभग सभी वर्णों में पाये जाते हैं, जैसे A (ए), a (स्माल ए), B (बी), b (स्माल बी), R (आर), r (स्माल आर), F (एफ), f (स्माल एफ) आदि लेकिन नागरी का प्रयोग इसके उद्भव काल से ही एकाधिक भाषाओं के लिए अत्यंत विस्तृत क्षेत्र में होता रहा है।
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अध्ययन की सुविदा के लिए हमने डॉ. सुशीला जोशी द्वारा किए गए काल विभाजन के आधार पर विश्लेषण किया है-(जो अग्रलिखित पृष्ठों पर है) उद्भव काल हिंदी पत्रकारिता का उद्भव काल (1826 से 1867) कलकत्ता से 30 मई, 1826 को ‘उदन्त मार्तण्ड' के सम्पादन से प्रारंभ हिंदी पत्रकारिता की विकास यात्रा कहीं थमी और कहीं ठहरी नहीं है ।
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अध्ययन की सुविदा के लिए हमने डॉ. सुशीला जोशी द्वारा किए गए काल विभाजन के आधार पर विश्लेषण किया है-(जो अग्रलिखित पृष्ठों पर है) उद्भव काल हिंदी पत्रकारिता का उद्भव काल (1826 से 1867) कलकत्ता से 30 मई, 1826 को ‘उदन्त मार्तण्ड' के सम्पादन से प्रारंभ हिंदी पत्रकारिता की विकास यात्रा कहीं थमी और कहीं ठहरी नहीं है ।
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कविता के उद्भव काल से समकालीन लेखन तक उषा-काल, प्रातः बेला तथा संध्याकाल को विषय बनाकर हजारों कविताऐं लिखी गई हैं और भविष्य में भी काव्यक्षेत्र से यह विषय निर्वासित नहीं किया जाने वाला है किन्तु नया रचनाकार यदि उन्हें नई ताजगी और अपने अन्दाजे-बयाँ में प्रस्तुत करता है, तो विषयगत दुहराव भी पढ़ने, सुनने और गुनने में सर्वथा नया प्रतीत होने लगता है।
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(अ) उद्भव काल (ब) विकास काल (स) उत्थान काल (द) हिंदी पत्रकारिता का उत्कर्ष काल (य) समसामयिक पत्रकारिता का परिदृश्य (र) प्रमुख पत्र-पत्रिकाएं और पत्रकार 0 सर्वेश्वर-जीवन परिचय एवं रचनात्मक आयाम 0 पत्रकार सर्वेश्वर का व्यक्तित्व 0 सर्वेश्वर की पत्रकारिता-विकास के आयाम 0 सर्वेश्वर की पत्रकारिता-संदर्भ और दृष्टि (अ) भाषा और उसकी संरचना का संदर्भ (ब) राजनीतिक संदर्भ (स) सांस्कृतिक एवं धार्मिक संदर्भ (द) साहित्यिक संदर्भ 0 सर्वेश्वर की पत्रकारिता-उपलब्धि और सीमाएं 0 लेखक परिचय