सच ही सुनता हूँ, सच सुनाता हूँ और मैं रोज़ मुंह की खाता हूँ भाईचारा,समाज, मजहब, अम्न अब इन्हें मुंह नहीं लगाता हूँ मैं भिखारी हुआ तो इस पर भी लोग बोले, बहुत कमाता हूँ मेरे बाजू ही मेरी दुनिया हैं अपनी किस्मत का खुद विधाता हूँ आप तहजीब की तलाश में हैं चलिए, मैं भी पता लगाता हूँ जीत जाते हैं लोग दुश्मन से दोस्तों से मैं हार जाता हूँ मुझ पे भी ध्यान दो कभी 'सर्वत' मैं तुम्हारा उधार खाता हूँ Sarwat ji ke kisi ek sher ko pasand karna bahut mushkil tha.....