परन्तु उपन्यास में कई स्थल ऐसे आते है जहां लगता है कि सरकारी विभागों / दफ्तरों की जिन स्थितियों-परिस्थितियों को उपन्यास के पात्रों के माध्यम से उभर कर आना चाहिए था, उसे लेखक स्वयं नरेट करता है अर्थात वह पात्रों को कहने का अधिकार देता प्रतीत नहीं होता।