{इस स्तंभ का उद्देश्य कथा लेखकों का सहचर होना रहा है और इस बार हिंदी के वरिष्ठ कथाकार, नाटककार और नाट्य-समीक्षक हृषीकेश सुलभ हमें अपनी उस रचना-भूमि की यात्रा पर साथ लिए चल रहे हैं, जिसकी उदास लेकिन उर्वर मिट्टी ने उन्हें गढ़ा है.
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अब वृक्ष लगना भी कठिन हो गया क्योंकि जो उर्वर मिट्टी की परत उन पहाड़ियों पर थी, अब वर्षा की तेज बूंदों से धुलकर बह गई थी पहले जब वन वृक्षों से समृद्ध थे तब वर्षा की बूंदों की तेजी को वृक्ष कम कर देते थे।
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{इस स्तंभ का उद्देश्य कथा लेखकों का सहचर होना रहा है और इस बार हिंदी के वरिष्ठ कथाकार, नाटककार और नाट्य-समीक्षक हृषीकेश सुलभ हमें अपनी उस रचना-भूमि की यात्रा पर साथ लिए चल रहे हैं, जिसकी उदास लेकिन उर्वर मिट्टी ने उन्हें गढ़ा है.
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उसमें सिक्षा की शीतल हवा, स्वास्थ्य का निर्मल नीर, निर्भरता की उर्वर मिट्टी, उन्नति का आकाश, दृढ़ता के पर्वत, आस्था की सलिला, उदारता का समुद्र तथा आत्मीयता की अग्नि का स्पर्श पाकर जीवन के पौधे में प्रेम के पुष्प महक रहे थे.
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उसमें शिक्षा की शीतल हवा, स्वास्थ्य का निर्मल नीर, निर्भरता की उर्वर मिट्टी, उन्नति का आकाश, दृढ़ता के पर्वत, आस्था की सलिला, उदारता का समुद्र तथा आत्मीयता की अग्नि का स्पर्श पाकर जीवन के पौधे में प्रेम के पुष्प महक रहे थे.