महाशय चाहते तो नदी के किनारे सूखी जमीन पर बैठ हाथ आगे बढ़ा ' पानी छू ' सकते थे लेकिन वह टखने भर पानी में ' हेल ' कर, अंडकोषों को भीगने से बचाते हुए पिछवाड़ा ' उलार ' अवस्था में धोवन क्रिया निपटा रहे थे।
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अब देखने में भी तो इतने छौने से ही हैं आ बाबा भी तो लगता है दुलार उलार करके इनको तनिक जादा ही सनका दिए हैं, इसलिए तो ऊ ऐसे हठी बने हुए हैं...अब कैसे समझाएं इन्हें..ई जो दुनू हाथ से बंसुरिया धरे हैं,पाहिले उसको छोड़ें तभी न भोजन ओजन करेंगे..
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अब देखने में भी तो इतने छौने से ही हैं आ बाबा भी तो लगता है दुलार उलार करके इनको तनिक जादा ही सनका दिए हैं, इसलिए तो ऊ ऐसे हठी बने हुए हैं...अब कैसे समझाएं इन्हें..ई जो दुनू हाथ से बंसुरिया धरे हैं,पाहिले उसको छोड़ें तभी न भोजन ओजन करेंगे..
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एक दिन दगडियो आई मेरा मन माँ एक भयंकर विचार की बणी जौँ मैं फिर सी ब्योला अर फिर सी साजो मेरी तिबार ब्योली हो मेरी छड़छड़ी बान्द जून सी मुखडी माँ साज सिंगार बीती ग्येन ब्यो का आठ बरस जगणा छ फिर उमंग और उलार पैली बैठी थोऊ मैं पालंकी पर अब बैठण घोड़ी पकड़ी मूठ तब पैरी थोऊ मैन पिंग्लू धोती कुरता अब की बार सूट बूट बामण रखण जवान दगडा, बूढया रखण घर माँ दरोलिया रखण काबू माँ न करू जू दारू की