जब मैंने यहाँ से ऊपर चढना शुरु किया तो सच में पता चल गया कि इस मार्ग से कई दिनों से कोई नहीं आया था।
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हां जी, प्रति किलोमीटर यानी प्रति 1000 मीटर पर 50 मीटर ऊपर चढना साधारण सी ही बात है लेकिन समुद्र तल से ज्यादा ऊंचाई इसे असाधारण बना देती है।
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भोजवासा से आगे चलते हुए हम एकदम सीधे घाटी में नहीं उतरे थे, क्योंकि घाटी में उतर कर दुबारा ऊपर चढना पडता जो उस थकावट में बहुत तकलीफ़ देय होता।
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गंगोत्री से गौमुख तक 18 किलोमीटर का रास्ता है और हमें 3000 से 3900 मीटर की ऊंचाई तक पहुंचना होता है यानी हर किलोमीटर पर मात्र 50 मीटर ही ऊपर चढना होता है जोकि मामूली सी बात है।
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पहाड़ों पार चढाने का सबसे अच्छा तरीका होता है छोटे छोटे कदमों से चढ़ा जाये, यानि एक दम किसी ऊँची सीढ़ी पर चढ़ने के बजाय साइड के छोटे पत्थरों से कई स्टेप्स बना लीं जाएँ.इस तरह ऊपर चढना उतरने से ज्यादा आसान लगा.