हम मानते हैं कि दर्शन का कार्य उन सब मानवीय क्रियाओं की समीक्षित चेतना है, जिनका लक्ष्य गुणात्मक उत्कर्ष की प्राप्ति है-अथवा ऐसे आनन्द की प्राप्ति जो व्यक्तित्व की गुणात्मक ऊर्ध्व गति से सहचरित रहता है।
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हम मानते हैं कि दर्शन का कार्य उन सब मानवीय क्रियाओं की समीक्षित चेतना है, जिनका लक्ष्य गुणात्मक उत्कर्ष की प्राप्ति है-अथवा ऐसे आनन्द की प्राप्ति जो व्यक्तित्व की गुणात्मक ऊर्ध्व गति से सहचरित रहता है।
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हम मानते हैं कि दर्शन का कार्य उन सब मानवीय क्रियाओं की समीक्षित चेतना है, जिनका लक्ष्य गुणात्मक उत्कर्ष की प्राप्ति है-अथवा ऐसे आनन्द की प्राप्ति जो व्यक्तित्व की गुणात्मक ऊर्ध्व गति से सहचरित रहता है।
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ये विधियां इस बात की फ्रिक करती है कि कैसे ऊर्जा ऊर्ध्व गति करे, नये केंद्रों तक पहुचे ; कैसे तुम् हारे भीतर नई ऊर्जा का आविर्भाव हो और कैसे प्रत् येक गति के साथ वह तुम् हें नया आदमी बना दे।
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बृहदारण्यकोपनिषद के पांचवें से आठवें ब्राह्मण की श्रृंखला में सत्य एवं ब्रह्म को प्रतिष्ठित किया गया है जिसमें सूर्य जैसे तेज से युक्त रूप को ब्रह्म माना गया है तथा मनोमय व्यक्ति, अग्नि, मरणोत्तर ऊर्ध्व गति, विद्युत वाक, गाय, अन्न एवं प्राण में ‘ ब्रह्म ' को ही व्याप्त माना गया है उसके बिना सभी कुछ अव्यक्त है उसी से सभी को आधार प्राप्त होता है इन सभी को इसी का रूप मानकर इनकी उपासना करनी चाहि ए.