की भांति आपको यज्ञ के साधन रूप, होता रूप, ऋत्विज रूप, प्रकृष्ट ज्ञानी रूप, चिर पुरातन और अविनाशी रूप मे स्थापित करतें है॥११॥
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इस बीच ब्रह्मा नामक ऋत्विज एक अक्ष के ऊपर स्थिर किए गए रथचक्र के ऊपर बैठकर उस चक्र का सर्पण करता है ।
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साधारण अर्थ-मै अग्नि क़ी प्रार्थना करता हूँ जो पुरोहित, होता एवं ऋत्विज तीनो को अर्थ, धर्म एवं मोक्ष देने वाला है.
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हम मनुष्यो की भांति आपको यज्ञ के साधन रूप, होता रूप, ऋत्विज रूप, प्रकृष्ट ज्ञानी रूप, चिर पुरातन और अविनाशी रूप मे स्थापित करतें है॥११॥ ५३०.
25.
हम ऋत्विज अपने सूक्ष्म वाक्यों (मंत्र शक्ति) से व्यक्तियो मे देवत्व का विकास करने वाली महानता का वर्णन करते है; जिस महानता का वर्णन(स्तवन) ऋषियो ने भली प्रकार किया था॥१॥
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अर्थ-हम अग्निदेव की स् तुति करते हैं जो यज्ञ के पुरोहित, देवता, ऋत्विज, होता और याजकों को रत्नों से विभूषित करने वाले हैं ।।
27.
यज्ञ के ऋत्विज पद को लेकर निमिराजा के साथ षट्राग हुआ, दोनों ने एक दूसरे को श्राप दिया, परिणामस्वरूप दोनों की आत्मा शरीर त्याग कर ब्रह्मलोक में गयी।
28.
वस्तुत: तो गीता में जो यज्ञों की दक्षिणा का वर्णन हैं उसका तात्पर्य यह हैं कि सामान्य रीति से यज्ञादि में ऋत्विज वगैरह दक्षिणा ही के लोभ से आते हैं।
29.
वह वेदज्ञ पुरुष ऋत्विज को देने के लिए धन को देने के लिए धन को बाँटता हुआ और कुबुद्धियों का दमन करता हुआ सारी पृथ्वी को यज्ञ वेदी बना देता है.
30.
और सायंकाल होम करनेवाला ऋत्विज एक ही होता है, परंतु दर्श (अमावस्या के दूसरे दिन प्रतिपद को होनेवाली) इष्टि में तथा पौर्णमास (पूर्णिमा के दूसरे दिन प्रतिपदवाली) इष्टि में चार ऋत्विज् होते हैं जिनके नाम हैं-अध्वर्यु, होता, ब्रह्मा और आग्नीध्र।