अतः आत्म-शक्ति द्वारा चालित शरीर विचित्र यन्त्र है जिसका चालक जीव नियुक्त है और तीनों-आत्म-शक्ति, शरीर रूपी विचित्र यन्त्र और जीव रूपी चालक का एकमात्र मालिक या संचालक केवल परमेश्वर ही हैं जो कि परमधाम में विराजमान रहते हैं और युग युग में विशिष्ट प्रतिनिधियों की करुण पुकार पर आते हैं और समस्त किस्म के मैं-मेरा, तू-तेरा रूप झगड़ों का रहस्य यथार्थतः जनाते, दिखाते, समझाते और पहचान या परख कराते हुये सत्य और न्याय के साथ ‘ ठीक ' करते हैं।