बूढ़ो मे भी दम है-3 गतान्क से आगे......... दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा बूढ़ो मे भी दम है का तीसरा पार्ट लेकर हाजिर हूँ अब आगे की कहानी कंदर अंकल ने मेरी बाहों के नीचे से हाथ ले जाकर मेरे बदन को ठीक मेरे बूब्स के नीचे से पकड़ा.
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थोरी देर के बाद मैं नुपुर कि मुँह कंदर खलास हो गया तो नुपुर मी सारा का सारा पानी पी गयी और्फिर हम से बोली, “ है बहुत मज़ा आया, अब तुम जल्दी से मेरी चूत्य गंद अपने लुंड से छोड़ दो, मैं बहुत गरम हो गयी हूँ. ”
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की दिसि पै का मैं चक्र चलाँ (भटराय = श्रेष्ठ योद्धा, कंदर = कंदरा, गुफा, निकसि = निकल कर, गजजूथ = हाथियों का झुंड, दीठि = दृष्टि, भाखैं= कहते हैं, सुरसरी सुवन = गंगापुत्र भीष्म, पन = प्रण, डराँ = डरा, दिसि = दिशा में, ओर)भगवान जब भीष्म के रथ के पास पहुते है और भीष्म के वैष्णव तिलक की ओर देखते हैं, चक्र की ज्वाला शीतल हो जाती है और भगवान हँसते हुए पीठ दिखा देते हैं।