जब से तुम मनमीत बने हो, कोकिला का कंपित स्वर ही बजने लगा है अंतर्मन में, निर्झर की झर झर वाणी ने स्वर बसा दिये इस निर्जन में, कोमल हृदय के कण कण में तुम मेरे संगीत बने हो। जब से तुम.................. पल पल प्रतिपल, दिक् दिक् प्रतिदिक्, नयन निर्मिमेष तुम्हे निहारते, झंकृत तारों के स्वर भी, तेरा नाम ही सदा पुकारते, अंग अंग की भाषा तुम हो तुम मन की ही प्रीत बने हो । जब से तुम..................