ख़ुशी से खुद भी भूली तेजवंती, स्वयं एक-पीढ़ा-(लकड़ी की पाटी) पर उंकड़ू (भोजपूरी लोकल भाषा में _ “ चुकुमुकु! ”) बैठ गई, उनके बगल में एक पानी भरी बाल्टी एक पीतल का लोटा, और एक बड़ा कठौत (या कडाह) था! सदा की भाँति घूंघट ताने तेजवंती ने राम के पैरों से उनके जूते उतारे! और पैरों को कडाह में रखकर लोटे द्वारा बाल्टी से पानी ले-लेकर उनके पाँव धोने लगी! राम जानते थे आगे क्या होने वाला है!
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ख़ुशी से खुद भी भूली तेजवंती, स्वयं एक-पीढ़ा-(लकड़ी की पाटी) पर उंकड़ू (भोजपूरी लोकल भाषा में _ “ चुकुमुकु! ”) बैठ गई, उनके बगल में एक पानी भरी बाल्टी एक पीतल का लोटा, और एक बड़ा कठौत (या कडाह) था! सदा की भाँति घूंघट ताने तेजवंती ने राम के पैरों से उनके जूते उतारे! और पैरों को कडाह में रखकर लोटे द्वारा बाल्टी से पानी ले-लेकर उनके पाँव धोने लगी! राम जानते थे आगे क्या होने वाला है!