अच्छी कवितायेँ! अच्छी इस लिए कि वे अपने परिवेश से उठाये गए चित्रों का ईमानदारी से किया गया प्रस्तुतीकरण है | जिसे आमतौर पर अनदेखा किया जाता है या जिसे कथनीय नहीं समझा जाता उसे इन कवितायों में जगह दी गई है!
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यहाँ विचारणीय यह है कि यदि ' सांख्य ' शब्द ज्ञानर्थक है, सम्प्रदाय-विशेष नहीं, तव सांख्य ' बुद्धि ' कहकर पुनरूक्ति की आवश्यकता क्या थी? बुद्धि शब्द से कथनीय ' ज्ञान ' का भाव तो सांख्य के ' ख्याति ' में आ ही जाता है।
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चीज़ें इतनी मूर्त और कथनीय नहीं हुआ करतीं जितना लोग हमसे यक़ीन करने को कहते हैं ; ज़्यादातर अनुभव अकथनीय होते हैं, वे एक ऐसे शून्य में घटते हैं जहां कोई भी शब्द कभी भी प्रविष्ट नहीं हुआ होता, और बाक़ी सारी चीज़ों से ज़्यादा अकथनीय होती हैं कलाकृतियां, वे रहस्यमय अस्तित्व जिनका जीवन हमारे क्षुद्र और नाशवान जीवन से परे बना रहता है.
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काफी देर तक हमारे बीच मौन ही बोला, शब्द नही बोले, बोलते भी कैसे, शब्दो की एक सीमा होती है, पर मौन की सीमा नही होती, वो हर अकथनीय को कथनीय बना देता है, बस उसको समझने के लिये आपका दिल से मौन होना जरूरी है, जहाँ विचार भी खत्म हो जाये वहाँ से मौन की भाषा शुरू होती है, तो खैर मौन हम दोनो के बीच मे बोला, फ़िर चुप्पी तोडी गयी, हम दोनो ही सामान्य हो चुके थे, अब बारी थी शब्दो कि,