कथा का वैज्ञानिक पक्ष-एड्स के निजात हेतु औषधि की खोज करते हुए कथा नायिका उसी वाइरस से संक्रमित हो जाती है, पर नियमित व्यायाम, अपनी दृढ इच्छा व मानसिक शाक्ति, तथा जीने की उत्कृष्ट जिजीविषा के फलस्वरूप वह पूर्णत: स्वरूप हो जाती है।
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ऐसे में आपका यह कथन व इस से जुड़े सन्दर्भ का अर्थ भिन्न होगा कि-“ लेखिका स्वयं स्वीकार करती हैं कि कथा नायिका संध्या उर्फ़ संधि तथा मेरे लड़की होने के दिनों के अंतर को दो ” दूर दूर बसी सभ्यताओं के अंतर “ जैसा समझना चाहिए। ”
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एक जैसी लड़कियां, उनकी एक जैसी सामाजिक-पारिवारिक परिस्थितियां, विद्रोह का उनका लगभग एक ही जैसा तरीका, लगभग हर दूसरी कहानी में कथा नायिका का पत्रकारिता या उससे जुड़े किसी पेशे से होना, उनकी भाषा का लगभग एक जैसा मुहावरा इन कहानियों के एक दूसरे का एक्स्टेंशन या अनुकृति होने का भी भान कराते हैं.
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कथा नायिका कुर्निकोवा के मानस-पटल पर अनेकानेक स्मृतियाँ उद्भासित होती हैं-यथा “तुम्हारे इन सुदीर्घ नयनों की गारिमा, सौन्दर्य तो नेत्र मध्य निहित कालिमा ही पदान करती है।....तुम साक्षात हिम धवला प्रतीत होती हो और फिर तुम तो जानती ही हो कि तुम्हें देखकर युवकगण क्या गाने लगते हैं.......उसके स्मृति पटल पर अपेक्षाकृत नवीन घटनाओं, क्रमों के बिम्ब उभरने लगे3।...”एक वैज्ञानिक कथा में पूर्वदीप्ति शैली का अन्यंत ही मनोरम उदाहरण है।
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कथा नायिका कुर्निकोवा के मानस-पटल पर अनेकानेक स्मृतियाँ उद्भासित होती हैं-यथा “तुम्हारे इन सुदीर्घ नयनों की गारिमा, सौन्दर्य तो नेत्र मध्य निहित कालिमा ही पदान करती है।....तुम साक्षात हिम धवला प्रतीत होती हो और फिर तुम तो जानती ही हो कि तुम्हें देखकर युवकगण क्या गाने लगते हैं.......उसके स्मृति पटल पर अपेक्षाकृत नवीन घटनाओं, क्रमों के बिम्ब उभरने लगे3।...” एक वैज्ञानिक कथा में पूर्वदीप्ति शैली का अन्यंत ही मनोरम उदाहरण है।