पिछले कुछ वर्षों से कलापरक आयोजनों से मेरा जुड़ाव और मेरे कुछ बड़े साथियों से सुनी कहानी के बूते, तुर्रा-कलगी शब्द से थोड़े रूप में तो मैं, पारिवारिक था ही, लेकिन मन में इस कला के उन सुगठित, संघर्षशील कलाकारों और उनकी कलाकारी को बहुत नजदीक से देखने की बात दिल में दबी पड़ी थी।
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नवम्बर, 2009 की शुरूआत में बाजार में किसी फोटो स्टेट की दुकान पर मीरा स्मृति संस्थान चित्तौड़गढ़ के सचिव सत्यनारायण समदानी ने 15-16 नवम्बर को ही चित्तौड़गढ़ के एक विश्रान्ति गृह में होने वाली कलापरक कार्यशाला के बारे में मोटी-मोटी जानकारी दी, मेंने अपने कुछ मित्रों तक यह खबर एसएमएस और अपने ब्लाॅग के जरिये भेजी भी।