| 21. | नामु सकल कलि कलुष निकंदन॥ 4 ॥
|
| 22. | सारा कलुष मिटा कर अपना फूले नहीं समाए थे।
|
| 23. | सुरसरिता करती है पावन॥51॥मेरा मन अति कलुष भरा है।
|
| 24. | कलुष पी पल्लवकरों से प्राण वायु बिखेर दूँगा.
|
| 25. | को कहि सकइ प्रयाग प्रभाऊ, कलुष पुंज कुंजर मृगराऊ
|
| 26. | चौथ के चन्द्रमा के कलुष की तरह
|
| 27. | वही न जिसके मन में कलुष का भंडार हो।
|
| 28. | कलुष मन का मेरा धो जायें ।
|
| 29. | मिटे कलुष, पाप, उद्वीप्त हृदय हो,
|
| 30. | कलुष भेद, तम हर प्रकाश भर
|