प्राचीन भारतीय वांङ्मय में ‘ सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः ', ‘ कामयेः दुःखताप्तानाम्, प्राणिनाम् आर्तिनाशनम् ' तथा ‘ वसुधैव कुंटुबकम् ' की मंगलकामनाएं, शंकराचार्य का सत्-चित्-आनंद, सुकरात का ‘ शुभ ', प्लेटो का कल्याणकारी समाज का सपना, महावीर स्वामी का ‘ कैवल्य ' आदि सभी में सहकारिता के सिद्धांत के बीजतत्व मौजूद रहे हैं.