बात चाहे महिला आरक्षण विधेयक की हो या घरेलु हिंसा निरोधक कानून की या फ़िर नारी सश्क्तिकर्ण की, नारी की कमजोरी आज भी उजागर हॆ! अब तो लेखक भी नारी की व्यथा लिखते लिखते थक गये हैं! लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात! कह्ना गलत न होगा कि हम नारी को सशक्त बनाने के नाम पर हमेशा उसे यही एहसास दिलाते हैं कि वह आज भी अबला है!