दूनिया के अन्य विकसित देशों की तरह भारत मे भी अब टीवी का व्याप इतना बढ गया है कि इस पर क़ाबू पाना नामुमकिन हो गया है.
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हक़ को पाने में सबसे बड़ी रूकावट ख़ुद इंसान का नफ़्स है और इससे जिहाद करके इसकी हैवानी ख़सलतों पर क़ाबू पाना सबसे ज़्यादा मुश्किल काम है।
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पाकिस्तान का बंटवारा, बांगलादेश का निर्माण, आपातकाल और सबसे बढ़कर ख़ालिस्तान की माँग, इनसब पर क़ाबू पाना सब किसी के लिए आसान नहीं था.
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समरस समाज को बनाता है रोज़ा रोज़े की हालत में आदमी खुद को झूठ, चुग़ली, लड़ाई-झगड़े और बकवास कामों से बचाता है, गुस्से पर क़ाबू पाना सीखता है।
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गुस्से को मिटाइये मत बल्कि उस पर क़ाबू पाना सीखिये समाज में सबके साथ रहना है तो दूसरों की ग़लतियों को नज़रअंदाज़ भी करना पड़ता है और कभी कभी उन्हें ढकना भी पड़ता है।
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कुछ हो अब, तय है-मुझको आशंकाओं पर क़ाबू पाना है,पत्थरों के सीने में प्रतिध्वनि जगाते हुए परिचित उन राहों में एक बार विजय-गीत गाते हुए जाना है-जिनमें मैं हार चुका हूँ ।
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कुछ हो अब, तय है-मुझको आशंकाओं पर क़ाबू पाना है, पत्थरों के सीने में प्रतिध्वनि जगाते हुए परिचित उन राहों में एक बार विजय-गीत गाते हुए जाना है-जिनमें मैं हार चुका हूँ ।
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अगर पाकिस्तान इस आतंकवादी कार्रवाई को रोक सकता तो शायद ज़रूर रोक लेता अर्थात वास्वतिकता यह है कि पाकिस्तान ख़ुद भी आतंकवाद का शिकार है और उस पर क़ाबू पाना उसके लिए भी आसान काम नहीं है।
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कुछ हो अब, तय है-मुझको आशंकाओं पर क़ाबू पाना है, पत्थरों के सीने में प्रतिध्वनि जगाते हुए परिचित उन राहों में एक बार विजय-गीत गाते हुए जाना है-जिनमें मैं हार चुका हूँ ।
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ऐसे में मेरे मन में यह सवाल शैतान की तरह सिर उठाने लगता है कि जब मरद के लिए इस ज़रूरत पर क़ाबू पाना इतना मुश्किल है, तो औरत के लिए भी क्या वैसा ही नहीं होगा?