अलबत्ता खर्राटे उप-ज्व्हिया (यूव्युला, कौआ, गले की घंटी भी कहा जाता है इसे अलिजिह्व्या भी कहतें हैं जो मुख के एक दम भीतर ठीक गले से ऊपर लटकता छोटा मांस पिंड होता है) या एपिग्लोतिस (काग या कौआ, काकल) के ज़ोरदार हरकत में आने से भी पैदा होतें हैं.
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न ग़ुल नग़मह हों न परद साज़ में हों अपनी शकसत की आवाज़ तो और आराश ख़म काकल में और अनदीशह हा दूर दराज़ लाफ़ तमकीं फ़रीब सादह दली हम हीं और राज़ हा सीनह गदाज़ हों गरफ़तार अलफ़त सयाद वरनह बाक़ी है ताक़त परवाज़ वह भी दिन हो कि इस सितम गर से नाज़ खीनचों बजा हसरत नाज़ नहीं दिल में मरे वह क़तर ख़ोन जस से मज़गां हवी न हो