काठ का उल्लू भी एक बडी कहावत के रूप में उन लोगों के लिये कही जाती है जो कितनी ही बार समझाने पर भी नही समझते है, और जब उनसे पूंछा जाता है वे पहले जैसा ही जबाब देते है, इसलिये उन्हे बेवकूफ़ों की श्रेणी मे लेजाने के लिये काठ का उल्लू कहा जाता है।
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क्या आपको पता है कि “ अपना उल्लू सीधा करना ” मुहावरा हम क्यों बोलते हैं? उल्लू तो बेचारा गोल-मटोल सीधा-सादा प्राणी है, हम कम बुद्धि वाले लोगों को भी उल्लू कह देते हैं, निरे मूर्ख व्यक्ति को काठ का उल्लू कहा जाता है, क्योंकि वह तो स्थिर होता ही है, उसे सीधा या टेढ़ा करने की ज़रुरत नहीं होती।
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आदरणीया निशा जी, आपको एवं अन्य ब्लॉगर बंधुओं को स्वाधीनता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ! हमारे प्यारे देशभक्त शहीदों के सच्चे प्रयासों से हमारा देश पूर्व की भांति सोने की चिड़िया न रहकर लोहे की होकर आज़ाद तो हो गया लेकिन अब क्या किया जाये जब हमारे इस “ कथित ” आज़ाद देश के कर्णधार ही इसको “ काठ का उल्लू ” बनाने पर आतुर हो गए हैं!!
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पढत पढत पडरा भये लिखत लिखत भये काठ, पंडित जी ने पहाडा पूँछा सोलह दूनी आठ ”, यह कहावत का आधा रूप है, लेकिन इसके अन्दर उल्लू तो कहीं नही आया, उल्लू की आंखों में देखकर पता करना है कि वास्तव में वह उल्लू है तो ठीक है लेकिन काठ का उल्लू कहीं इसलिये तो नही कि वह पेडों की खोखर में निवास करता है, पेड की लकडी को भी काठ कहा जाता है।
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तुम साले शपथ दिलाओ और अपुन चले सुप्रीम कोर्ट....... कलाम साहब के हाथ पाँव फूल गए......उन्होंने बुलवाया नटवर सिंह को....सारी बात बताई.......तब फिर अम्मा ने बलिदान का नाटक कर दिया.....अब क्या करें....लौंडा तो तब तक एकदम घोंचू था.......उसे तो जूजी पकड़ के मूतना तक नहीं आता था, सो ऐसा आदमी ढूँढा जो एकदम काठ का उल्लू हो....तब तक कुर्सी गरम रख सके जब तक युवराज नेकर न पहनने लगें...........सो अपने मनमोहन सिंह की ताजपोशी हुई.......पर युवराज ऐसे