ज़बान दे कर किसी को प्रतीक्षा में सुखाना, दूसरे के समय और श्रम की कोई परवाह न करना, अन्य का काम पूरा न कर सकने के भिन्न-भिन्न बनावटी और झूठे कारण देना, तथा परिणामस्वरूप दूसरों की नज़रों मे अपनी ज़बान की कीमत दो कौड़ी की कर डालना आखि़र क्यों होता है?
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वैसे तो कुछ कार्य जिनको आप वास्तव में सार्थक समझते हैं व उन्हें करना आपको हृदय से अच्छा लगता है, उन्हें किसी परिस्थितिवश न कर पाने के लिये कोई कारण देना बहानेबाजी की ही श्रेणी में आता है, फिर भी कहने के लिये कुछ पारिवारिक व पारिस्थितिक कारण रहे जिनके कारण ब्लागदुनिया व लेखनसुख से इतने दिन वंचित रहा।