/ भार हलका कर सकें इसके लिए / अब ज़हर की आग का काला धुआँ / निकलता है हृदय से, मेरी ज़बान / जब निवेदन कर रही अपना सहा / बोलते हैं वे ज़हर यह बेवकूफ़ी है / संघर्षवादी सत्य यह आदत-स्वरूपी है!!
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खिलते हैं फूल बिखेरते हैं रंग गाँव-गाँव गली-गली उड़ती है पतंग इसके होते ही शुरू होता है शरद का अंत इस पर लिख कर गए कवि निराला और पंत मंदबुद्धि मैं और आप अकलमंद आप ही सुलझाए मेरे मन का ये द्वंद बस के पीछे तो होता है बस काला धुआँ फिर इसका नामकरण क्यों ऐ