लाज तेरे पावन किरीट की बचाने हेतु कर में किरिच औ त्रिशूल धर लेंगे हम चामरों की सौम्य पवन का जिन्हें ज्ञान नहीं उन्हें समझाने को प्रलय-समर देंगे हम अब नहीं तृषित रहेगी देवी रणचंडी शत्रुओं के श्रोणित से घट भर देंगे हम सुमनों की क्या बिसात माता भेंट में तू आज मांग के तो देख दुश्मनों के सर देंगे हम
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इश्क का नशा तो किसी भी नशे से बढ़ कर चढ़ता है न...ये दिल जो इस तरह कमबख्त धड़कता है बंद क्यूँ न कर देता है धड़कना...लिखना कितनी बड़ी आज़ादी देता है...हम क्यूँ नहीं ये सारे अहसास अपने किरदारों के द्वारा जी लेते हैं...हम कैसे पागल हैं न कि जब तक खुद का दिल टूट के किरिच किरिच नहीं बिखरता लिख ही नहीं पाते.
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इश्क का नशा तो किसी भी नशे से बढ़ कर चढ़ता है न...ये दिल जो इस तरह कमबख्त धड़कता है बंद क्यूँ न कर देता है धड़कना...लिखना कितनी बड़ी आज़ादी देता है...हम क्यूँ नहीं ये सारे अहसास अपने किरदारों के द्वारा जी लेते हैं...हम कैसे पागल हैं न कि जब तक खुद का दिल टूट के किरिच किरिच नहीं बिखरता लिख ही नहीं पाते.
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चलते चलते आख़िर थक ही गई इशारे भर से रोक लिया उसे भी उस ढलती शाम को जो जाने कब से तो चल रहा था प्रश्नो की कँटीली राह पर नंगे पाँव नियम तोड़ रुक गया वह भीग गई आत्मा लहलहाई कोरों पर चमकी यह जानते हुए भी कि देह भर रुकी है उसकी शय्या के पास मन तो भटक ही रहा है किरिच भरी राहों पर उन प्रश्नों के समाधान ढ़ूँढ़ता जो अब तक पूछे ही न गए थे...