इसमें पाँच तो प्रधान (1) प्राण (2) अपान (3) समान (4) उदान (5) व्यान तथा पाँच उप प्रधान (1) नाग (2) कुर्म (3) कृकर (4) देवदत्त और (5) धनंजय ।
22.
सागर मंथन ” की, जिसमे एक कुर्म (कछुए) की पीठ को आधार बनाया जाता है मंदरांचल पर्वत को उस पर टिकाया जाता है और शेषनाग की डोरी बनाई जाती है तब मंथन होता है और उस मंथन से कई उपलब्धियों के साथ ही अमृत की प्राप्ति भी होती है |
23.
आरम्भ में पृथ्वी का अधिकाँश भाग जलमग्न था, सीमित स्थान था मनुष्य को रहने के लीये! कुर्म अवतार के साथ जब समुन्द्र में लहरों का गठन आरम्भ हो गया तो पृथ्वी का कुछ और भाग मनुष्य के रहने के लीये उपलभ्ध हुआ! वराह अवतार उपरान्त पृथ्वी का प्रचुर भाग मनुष्य के रहने के लीये उपलभ्ध हुआ!
24.
समझने वाले समझ गए होंगे कि मेरा आशय वोटों की राजनीती से है | आम जनता के रूप में समुद्र, कुर्म के रूप में स्वामीजी का बनाया वैचारिक आधार, मथानी के लिए मंदरांचल पर्वत के रूप में समस्याओं-वुराइयों और कुसंस्कृति का पहाड़, शेषनाग के रूप में भारत स्वाभिमान आन्दोलन की डोर | अभी तो मंथन जारी है |
25.
अब आगे है अवतार, भारत में अवतार परम्परा भगवान विष्णु के कुर्म अवतार के बाद से प्रारम्भ हुई है, उसके बाद अब तक नौ अवतार हो चुके है और दसवे अवतार है भगवान् कल्कि जो कलयुग के आखिरी पहर में जनम लेकर दुष्टों का वध करेंगे, साईं का इन में से किसी अवतार में जिक्र नहीं है, मानने वाले वेदों और पुरानो को झुठला कर उनका अपमान शौक से कर सकते है,
26.
में सांख्य को निरीश्वर ही कहा गया है तथा पराशर उपपुराण के कुछ श्लोकों के आधार पर भी सांख्य को अन्य शास्त्रों के साथ कुछ अंशों में श्रुति विरोधी और सेश्वर ब्रह्म मीमांसा शास्त्र को सर्वांश में श्रुतिसम्मत कहने से सांख्य के अनीश्वरवाद का आभास मिल जाता है तथापि कुर्म आदि पुराणों तथा पराशर आदि उप पुराण का समय बहुत बाद का होने के कारण ये कथन बौद्ध दर्शन से प्रभावित सांख्य के विषय में किये गए प्रतीत होते हैं |
27.
लौटने पर जब टिटिहरी ने अण्डों को अपने स्थान पर नहीं पाया तो वह विलाप करती हुई अपने पति से कहने लगी, ' मैंने पहले ही कहा था कि इस समुद्र की तरंगों से मेरे अण्डों का विनाश हो जाएगा | किन्तु अपनी मूर्खता और गर्व के कारण तुमने मेरी बात को नहीं सुना | किसी ने ठीक ही कहा है कि हितचिंतको और मित्रों की बात को जो नहीं मानता वह अपनी मूर्खता के कारण उसी प्रकार विनिष्ट हो जाता है जिस प्रकार की म्रुख कुर्म काष्ठ से गिरकर मर गया था | '
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सन ११ २ ८ अंकित है | कविचंद ने अपने ग्रन्थ कुर्म विलास में ई. सन. ९ ५ ४ वि. स. १ ० ११ लिखा है | पर दुल्हेराय के पूर्वज बज्रदामा जो दुल्हेराय से आठ पीढ़ी पहले थे का एक वि. संवत. १ ० ३ ४ बैसाख शुक्ल पंचमी, ४ नवंबर ९ ७७ का लिखा शिलालेख मिलने से कर्नल टाड, इम्पीरियल गजेटियर, कविचंद की तिथियों को सही नहीं माना जा सकता | जयपुर के राज्याभिलेखागर में भी जो ती तिथियाँ लिखी है वे आनंद संवत में है जिनकी वि.