६. १ बायोगैस या जैव गैस का इतिहासगोबर में मीथेन गैस की उपस्थिति का पता सर्वप्रथम सन् १८०० में हम्फेरीडैवे ने लगाया तथा प्रथम गैस प्लांट (संयंत्र) की स्थापना सन् १९०० मेंमटुंगा (गृह विहीन कुष्ठरोगी आश्रम) में की गई.
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बाबा आम्टे ने आनन्दवन के अलावा और भी कई कुष्ठरोगी सेवा संस्थानों जैसे, सोमनाथ, अशोकवन आदि की स्थापना की है जहां हजारों रोगियों की सेवा की जाती है और उन्हें रोगी से सच्चा कर्मयोगी बनाया जाता है।
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आनन्द वन ” के अलावा और भी कई कुष्ठरोगी सेवा संस्थानों जैसे, सोमनाथ, अशोकवन आदि की स्थापना की है जहाँ हजारों रोगियों की सेवा की जाती है और उन्हें रोगी से सच्चा कर्मयोगी बनाया जाता है.
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बाबा आमटे ने “ आनन्दवन ” के अलावा और भी कई कुष्ठरोगी सेवा संस्थानों जैसे, सोमनाथ, अशोकवन आदि की स्थापना की है जहाँ हजारों रोगियों की सेवा की जाती है और उन्हें रोगी से सच्चा कर्मयोगी बनाया जाता है ।
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अपने आगमन की सूचना देने के लिये कुष्ठरोगी अपने साथ एक टुनटुना और घंटी रखा करता था, और इसके उद्देश्य लोगों को दान देने के लिये आकर्षित करने के साथ ही इस बात की चेतावनी देना भी था कि एक रोगी व्यक्ति आस-पास ही है.
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लेकिन इन पंक्तियों को देख कर थोड़ा अजीब लगाः “अंधा, बहरा या मनोरोगी तो नहीं था मैं”अंधा हो या बहरा या मनोरोगी या कुष्ठरोगी या लैंगिक विकलाँग, सभी को समाज हाशिये से बाहर करता है, सभि का शोषण करता है, सभी के साथ अन्याय होता है.
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अपने आगमन की सूचना देने के लिये कुष्ठरोगी अपने साथ एक टुनटुना और घंटी रखा करता था, और इसके उद्देश्य लोगों को दान देने के लिये आकर्षित करने के साथ ही इस बात की चेतावनी देना भी था कि एक रोगी व्यक्ति आस-पास ही है.
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लेकिन इन पंक्तियों को देख कर थोड़ा अजीब लगाः “ अंधा, बहरा या मनोरोगी तो नहीं था मैं ” अंधा हो या बहरा या मनोरोगी या कुष्ठरोगी या लैंगिक विकलाँग, सभी को समाज हाशिये से बाहर करता है, सभि का शोषण करता है, सभी के साथ अन्याय होता है.
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जिस देश में करोड़ों लोगों को दो वक्त का खाना न मिल पा रहा हो, पचास फ़ीसदी से अधिक बच्चे कुपोषण के शिकार हों, दुनिया के 40 फ़ीसदी से अधिक लोग अनपढ़ हों, दुनिया के आधे अंधे तथा कुष्ठरोगी बसते हों, जनसंख्या तेज़ रफ़्तार से बढ़ रही हो, वहां महज़ दिखावे के लिए इन खेलों का आयोजन और वह भी भ्रष्ट व्यवस्था के साथ करना अंतहीन निर्लज्जता और हृदयहीनता को दर्शाता है.
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७. २ प्राचीन आयुर्वेद का मत है कि कुष्ठरोगी को बारहों महीने नीम वृक्ष के नीचे रहने, नीम के खाट पर सोने, नीम का दातुन करने, प्रात:काल नित्य एक छटाक नीम की पत्तियों को पीस कर पीने, पूरे शरीर में नित्य नीम तेल की मालिश करने, भोजन के वक्त नित्य पाँच तोला नीम का मद पीने, शैय्या पर नीम की ताजी पत्तियाँ बिछाने, नीम पत्तियों का रस जल में मिलाकर स्नान करने तथा नीम तेल में नीम की पत्तियों की राख मिलाकर घाव पर लगाने से पुराना से पुराना कोढ़ भी नष्ट हो जाता है।